नई दिल्ली, [जागरण न्यूज नेटवर्क]। नोकिया इंडिया के तत्कालीन उपाध्यक्ष डी. शिवकुमार ने 2007 में एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्नीस सौ पंचानबे में मोबाइल बाजार का जो माहौल था उसमें नोकिया की रणनीति को कोई भी अपनाता तो वह सफल हो सकता था। विशेषज्ञों के मुताबिक नोकिया की रणनीति उस समय के लिहाज से तो सही थी मगर बदलते समय के साथ उसने इसमें बहुत ज्यादा बदलाव की कोशिश नहीं की। यही वजह है कि मोबाइल बाजार की अगुवा कंपनी आज इस मुकाम पर पहुंच गई कि उसे अपना हैंडसेट कारोबार बेचने को मजबूर होना पड़ा।
दरअसल, नोकिया ने मोबाइल बाजार में पैठ बढ़ाने की जो रणनीति अपनाई थी उसमें जरूरत पड़ने पर बदलाव की गुंजाइश बहुत कम थी। परंपरागत रूप से नोकिया टॉयलेट पेपर से लेकर बिजली तक तैयार करती थी, लेकिन 1993 में कंपनी के सीईओ जोरमा ओलीला ने गैर मोबाइल कारोबार बेचकर सिर्फ हैंडसेट कारोबार पर ध्यान देने का फैसला किया। उस समय एलजी और सैमसंग जैसी सभी प्रतिस्पर्धी कंपनियां टीवी, फ्रिज जैसे दूसरे उत्पाद भी बनाती थीं। विशेषज्ञों के मुताबिक नोकिया की रणनीति में जोखिम यह था कि सब कुछ ठीक रहा तो कंपनी बेहतर करेगी, लेकिन अगर हैंडसेट की मांग कम होने लगी तो कंपनी क्या करेगी। इस लिहाज से सैमसंग का नजरिया अधिक लचीला था। सैमसंग दूसरे उत्पाद भी बना सकती थी, लेकिन नोकिया के पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था। इसके अलावा जब दूसरी प्रतिस्पर्धी कंपनियां स्मार्टफोन पर फोकस करने लगीं तो नोकिया ने इस क्षेत्र में शुरुआत करने में देर कर दी।
उलटा पड़ा दांव :
वर्ष 2007 में भारतीय मोबाइल बाजार में नोकिया की हिस्सेदारी 58 फीसद थी। जीएसएम हैंडसेट के तो 70 फीसद से अधिक कारोबार पर उसका कब्जा था। नोकिया के हैंडसेट की बिक्री एचसीएल करती थी, जिसका देश भर में तगड़ा वितरण नेटवर्क था। यह वह दौर था जब नोकिया की बादशाहत को चुनौती देने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। ऐसे में नोकिया ने एक साहसिक निर्णय लेते हुए हैंडसेट के वितरण का काम खुद करने का फैसला किया। कंपनी के इस फैसले ने सैमसंग जैसी प्रतिस्पर्धियों को बढ़त बनाने का एक मौका दे दिया, जिनके पास पहले से ही वितरण का अपना बड़ा और मजबूत नेटवर्क मौजूद था।
सस्ते के चक्कर में फंसी :
एक समय नोकिया के एन-सीरीज फोन की बाजार में बादशाहत थी। भारत में नोकिया 940 रुपये से लेकर 41,639 रुपये तक के फोन बेचती है। जानकार कहते हैं कि एक ही ब्रांड सभी के लिए नहीं हो सकता है। शहरों में नोकिया के ई-सीरीज फोन [कारोबारियों के लिए] और एन सीरीज फोन [मल्टीमीडिया फीचर्स वाले फोन] काफी लोकप्रिय थे। यहां उसे कोई भी चुनौती देता हुआ नजर नहीं आ रहा था। ऐसे में नोकिया ने आशा सीरीज के हैंडसेट के साथ अपना फोकस ग्रामीण बाजार पर किया। कारोबार के लिहाज से यह नोकिया की दूसरी रणनीतिक चूक थी। ग्रामीण भारत पर फोकस के चलते नोकिया ने हाई एंड फोन निर्माता की अपनी छवि को खो दिया। जबकि सस्ते फोन के मैदान में वह माइक्रोमैक्स, स्पाइस और चीन से आयातित कई अनजान ब्रांडों का मुकाबला नहीं कर सकी।
विंडोज पर निर्भरता:
नोकिया ने एक और रणनीतिक भूल गूगल के एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम से दूरी बनाकर की। वह पूरी तरह से माइक्रोसॉफ्ट के विंडोज प्लेटफार्म पर निर्भर हो गई। इसका उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा। दरअसल, हार्डवेयर के लिहाज से नोकिया के फोन को आज भी सबसे बेहतर माना जाता है, लेकिन सॉफ्टवेयर में अक्सर गड़बड़ी की शिकायत मिलती है। सैमसंग का गैलक्सी एंड्रॉयड प्लेटफार्म पर ही आधारित है।
Original.. http://www.jagran.com/news/business-fans-in-india-lament-death-of-a-brand-after-microsoft-buys-nokia-mobile-unit-10696686.html
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